मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

सबसे अच्छे गीत, विरह के गीत

कहते हैं ना सबसे अच्छे गीत, विरह के गीत.... इसलिए नहीं की उसमे दर्द होता है या उसमे दुःख है.... बल्कि इसलिए क्योंकि वह अपने जीवन से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ लगता है... ऐसा लगता है मानो यह अपनी ही तो कहानी है.... वह कहते हैं ना सुख तो फुलझड़ी की तरह है... एक बेर में ढेर.... मगर दुःख अगरबत्ती की तरह आपके साथ जीवन भर चलता ही रहता है.... सो बस आप लोगों के साथ आज एक विरह गीत बांटने का मन हुआ.... वैसे यह गीत तो हमारे गुरु रवीन्द्र जैन जी की आवाज में एक अलग ही स्वर का प्रतीत होता है.... हिंदी भोजपुरी मिश्रित वाकई में शायद सबसे बेहतरीन विरह गीतों में से एक.....

गीत: अचरा में फुलवा लई के.
फिल्म: दुल्हन वही जो पिया मन भाए
गीत और संगीत: रवीन्द्र जैन

अंचरा में फुलवा लई के, आये रे हम तोरे द्वार
अरे हे..... हमरी ना सुनले अर्जी पे कईले ना विचार
हमसे रुठ्ले विधाता हमर काहे रुठ्ले विधाता हमार.....

बड़े ही जतन से हमने पूजा का थार सजाया
प्रीत की बाती जोड़ी, मनवा का झूला जराया
हमरे मन मोहन को पर नहीं भाया...
अरे हो... रह गयी पूजा अधूरी मंदिर से दिया रे निकार
हमसे रुठ्ले विधाता हमार....

सोने की कलम से हमरी किस्मत लिखी होती
मोल लगा के लेते
हम भी मनचाहा मोती
एक प्रेम दीवानी हाए... एक प्रेम दीवानी हाए
ऐसे तो ना रोती
अरे हो.. इतना दुःख तो ना होता
पानी में जो ना देते डार...
हो काहे रुठ्ले विधाता हमार....



-देव

2 टिप्‍पणियां:

Mayur Malhar ने कहा…

बहुत दिनों बाद इस गीत की चर्चा हुई है.
शानदार गाना है यह. मज़ा आ गया.
जय रामजी की

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर.