सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

अलविदा अन्ना भैया...

अपना कौन पराया कौन, अपनों ने वनवास दिया श्री राम को सरजू पार और पराया था जो केवट, बन गया जीवन की पतवार। कोई मन में रहकर मन के सौ सौ टुकड़े कर जाए, कोई मन से दूर हो फिर भी यह मन सुख से भर जाए। राजश्री की फ़िल्म इसी लाइफ में का यह गीत, अभी एक ऑनलाइन रेडियो पर सुना। वाकई यह बात सच ही है, कभी कभी अपने खुद के रिश्ते बहुत तकलीफ देते हैं और कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारा कोई नहीं लेकिन वह मार्गदर्शक बन जाता है। हिन्दी ब्लॉगिंग से मेरा कुछ ऐसा ही रिश्ता है, यहाँ मुझे पूरा परिवार मिल गया। भैया, भाभी, दीदी, कितने प्यारे छोटे भाई बहन और न जाने कितने ऐसे अनजान लोग जो भले कभी हमसे मिलें न हों लेकिन फिर भी हमारे अपने ही हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों वर्ष 2003/2004 और 2005 के समय में जब यूनिकोड टाइपिंग नहीं थी और हम सीखने सिखाने में ही अपना समय बिता रहे थे, तब के साथी आज तक अटूट हैं।

जब मैं अमेरिका आया और मनीषा कन्फ्यूज़ थी कि कैसे सब होगा, मैंने पुरी कॉन्फिडेंस से कहा, अभिषेक है स्तुति है कोई दिक्कत नहीं होगी। और वाकई मेरे इन दोनों भाई, बहन ने बहुत मदद की है। शिवम भैया, प्रशांत, शेखर, सलिल दादा, अर्चना दीदी, रश्मि दीदी, अपने राजा भैया, अजय भैया, उड़न दद्दा, ललित दादा, महफूज़ भाई, प्रवीण भैया से लेकर संतोषजी तक सभी ने मेरा मार्ग दर्शन ही किया है। ऐसे कई और नाम हैं जो अभी स्मृति पटल पर नहीं आ रहे लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग के साथियों ने हमेशा मेरा साथ दिया है।

आज अन्नाभाई अविनाशजी के चले जाने से यह परिवार को बहुत गंभीर क्षति हुई है। हिन्दी ब्लॉगिंग का एक बहुत पुराना साथी, शिक्षक, मार्गदर्शक, व्यंग्यकार अंतिम यात्रा पर। यह बात बहुत विचलित कर गयी। आज सुबह सोकर उठते ही शिवम भैया का सन्देश देखा और मन उदास हो गया। मेरी अन्ना भैया से कई बार फोन पर बात हुई, मुलाक़ात हालाँकि एक दो बार ही हुई लेकिन परिचय बना रहा। व्यंग्यकार के साथ ज़िन्दगी ने बहुत बड़ा व्यंग्य किया, लेकिन उनका यूँ ही चले जाना धक्के जैसा है। ईश्वर के पास भी हमारे अन्ना भैया वही चिरपरिचित अंदाज़ में डोरी वाला चश्मा लगाए कोई व्यंग्य ही कह रहे होंगे.....

अलविदा अन्ना भैया...

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