सोमवार, 21 मार्च 2016

बैठे ठाले...

चन्दन है इस देश की माटी तपोभूमि हर गाँव है... हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है। न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के बीच की ट्रांस हडसन पाथ ट्रेन में नेटवर्क नहीं आता, क्योंकि ट्रेन भूमिगत रेल प्रणाली है और हडसन के तल के नीचे एक सुरंग से चलती है। मैं कान में हेडफोन लगाए संघ के गीत सुन रहा हूँ, जो शक्ति इन गीतों में है वह किसी और धिनचाक वाले कानफाडू गीतों में कहाँ?

ट्रेन में इस समय मेरे अलावा कोई भारतीय नहीं दिख रहा, सभी मुख्यतः अमेरिकी या अफ़्रीकी लग रहे हैं लेकिन सभी का मोबाइल में व्यस्त रहना और कॉमन है (मैं भी टीप टीप कर रहा हूँ सो मैं भी अपवाद नहीं)। कुछ बुज़ुर्ग लोग अखबार में व्यस्त हैं, शायद यहाँ की भी बुज़ुर्ग पीढ़ी अभी तक मोबाइल से न्यूज़ पढ़ने के लिए अभ्यस्त नहीं हुई है सो अखबार पढ़ रही है। एक दो महिलायें उपन्यास पढ़ रही हैं, उनमे से एक न जाने क्या पढ़ रही है क्योंकि कभी हंस रही है कभी गंभीर तो कभी ओह ओह कर रही है। पहली बार उसके यूँ आवाज़ निकालने से लोगों को अजीब लगा लेकिन अब सबको कोई फर्क नहीं पड़ रहा। हमारी विशेषता यही है न कि हम हर किसी को अपना लेते हैं। बहरहाल कल की बर्फ के बाद की ठंड ने थोड़ा परेशान तो किया ही है। मोटे मोटे जैकेट और मफलर कसे हुए लोगों को देखकर अजीब सा लगता है, पिछले हफ्ते जब पारा पचीस डिग्री पार गया था तब क्या गजब रंग बिरंगे लोग थे अब फिर से सब काला और ग्रे है। वैसे मौसम है, बदल ही जाएगा।

इस ट्रेन में मेरे सामने बैठे एक महिला ने कॉफ़ी का ग्लास फ्लोर पर रखा है लेकिन ट्रेन के चलने या रुकने से एक भी बूंद न छलका और न ही गिरा। वह कोई उपन्यास पढ़ रही है और बीच बीच में चुस्की लेकर रख दे रही है। इतना स्टेबिलिटी काश मुम्बई लोकल में होती तो मजा ही आ जाता, मुश्किल है लेकिन शायद अपने मेट्रो में भी ऐसा ही होता होगा।

मिडटाउन मैनहटन में 23 स्ट्रीट का मेरा स्टेशन आने को है और कान में बज रहा है, "होइहै सोई जो राम रची राखा, को करी तर्क बढ़ावहि साखा"... बस इसी सन्देश के साथ आज का दिन शुरू किया जाए... नया सप्ताह, सोमवार!!

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